पाठक व लेखक के मध्य सेतु की भूमिका निभाने का एक प्रयास ही सृजन सेतु है। साहित्य की विभिन्न विधाओं में सृजन तो बहुत हो रहा है लेकिन पाठकों तक पहुंचने में दुश्वारियां हैं। कहीं उत्कृष्ठ साहित्य पाठकों तक पहुंच नहीं पा रहा तो कहीं पाठकों में पठन-पाठन के प्रति रुचि कम हो रही है। इसके अनेक कारण भी हैं।
इंसान में साहित्य सृजन के प्रति झुकाव होने का मुख्य कारण क्या है, इस जिज्ञासावश बाराबंकी जिले के समस्त कवियों-साहित्यकारों के साक्षात्कार लेने का क्रम प्रारम्भ किया, जिससे बेहद रोचक बातें सामने आईं, वहीं तमाम तरह के अनुभव हुए, कुछ मीठे तो कुछ कड़वे भी। इस दौरान एक कठिनाई जो प्रमुखता से सामने आई कि कुछ कवि लेखक तो इतने प्रसिद्ध थे कि उन तक पहुंचना बहुत आसान रहा वहीं बहुत से कवि-लेखक गुमनामी में जीवन जी रहे थे। उन्होंने लेखन तो काफी किया लेकिन अंतरमुखी स्वभाव अथवा अन्य किसी कारण वह प्रचार-प्रसार से दूर रहे। कुछ ऐसे साहित्यकारों के नाम भी सामने आये जो अपने ही कुनबे के साथियों की दुर्भावना का शिकार हुए। करीब दो वर्ष तक यह खोजबीन चली और साक्षात्कार लगातार देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘हिन्दुस्तान’ में प्रकाशित भी होते रहे। फिर साक्षात्कार का सिलसिला रूक गया। किन्तु आज भी कतिपय लेखकों से अचानक मुलाकात होती है तो ज्ञात होता है कि उन्होंने तो कई दर्जन पुस्तकें लिखी हैं, लेकिन मेरा मिलने का सौभाग्य नहीं हो पाया। कुल मिलाकर जिले स्तर पर एक ऐसी पुस्तक की आवश्यकता प्रतीत हुई जिसमें जिले के सभी कवियों लेखकों का विवरण दर्ज हो। इस क्रम में बाराबंकी जनपद के समग्र साहित्य की पुस्तक प्रकाशित कराने का कार्य किया। ऐसी पुस्तक प्रत्येक जिले में होनी चाहिए, जो जिले के सभी कवियों की विवरणिका हो। जिसमें हिन्दी, उर्दू, अवधी, बृज आदि किसी भी भाषा-बोली में सृजन करने वाले सभी रचनाकारों का विवरण हो।
प्रत्येक जनपद का अपना एक साहित्य सृजन का गौरवशाली इतिहास है। सदियों पहले रोपे गए साहित्य रूपी बीज ही हैं जो आज वर्तमान में फसल बनकर लहलहा रहे हैं। साहित्य सृजन के इतिहास को समेटने का काम समय-समय पर होता रहा है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास सबसे अधिक प्रमाणिक माना जाता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बाराबंकी जिले के ग्राम धनौली के निवासी पं. महेश दत्त शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास को सूचीबद्ध करते हुए भाषा काव्य संग्रह पुसतक लिखी जो सन 1873 ई. में प्रकाशित हुई। प्रत्येक जिले में ऐसी बहुत सी साहित्य से जुड़ी ऐतिहासिक उपलब्धियां हैं, जो समय की गर्त तले दबी रह गयीं। बहुत से किस्से आज भी लोगों की जुबान पर हैं, जिनका संरक्षण, संवर्धन एवं नई पीढ़ी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी हर किसी की होनी चाहिए। किसी बड़े फलक पर कार्य करने से पूर्व अपने आसपास खोजबीन जरूरी है, इसी क्रम में बाराबंकी जिले की बात करें तो गोस्वामी तुलसीदास जी के समकालीन जिले के कवियों से लेकर अब तक जो स्मृतिशेष कवि लेखक हुए हैं, उनकी करीब ढाई सौ पुस्तकें धनाभाव या अन्य कारणों से अप्रकाशित रह गयी। कुछेक लेखकों के नाम ऐसे भी सामने आये, जिनके साहित्यिक अवदान से कोई परिचित नहीं था। कुछ कवियों-लेखकों की पाण्डुलिपियां चोरी हुईं तो कुछ समय के साथ दीमक का निवाला भी बनीं।
कहने तो यह महज एक जिले की कहानी है, लेकिन कमोबेश यही स्थित अधिकांश जनपदों में होगी, जहंा पर बहुत सा अप्रकाशित साहित्य आज भी प्रकाशन की बाट जोह रहा होगा, तो जाने कितने कवि-लेखक गुमनामी में जी रहे होंगे।
सृजन सेतु का प्रारम्भ तो बाराबंकी जिले से हो रहा है, लेकिन धीरे-धीरे हम सभी जनपदों के लेखकों-कवियों को इस मंच से जोड़ेंगे। इस समय बाराबंकी जनपद के किसी भी भाषा या विधा में लेखन करने वाले समस्त कवि, लेखक, साहित्यकार, शायरों का विवरण इस मंच पर उपलब्ध कराया जा रहा है, प्रयास और खोजबीन जारी है। यदि आप स्वयं लिखते हैं, या आपके आसपास कोई कवि लेखक है, जिनका विवरण इस मंच पर नहीं है तो हमें जरूर अवगत करायें। किसी लेखक के परिचय, उनकी साहित्यिक रचना में किसी भी प्रकार की त्रुटि आपको नजर आती है, तो हमें जरूर सूचित करें।
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पंकज कँवल
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