• हर शहर किस्से कहानियों से भरा पड़ा है। हम जहां रहते हैं वहां आसपास यूं तो कुछ खास नहीं नजर आता है लेकिन यदि समय को परत-दर-परत भूतकाल की तरफ खोलते हैं तो हर गली हर मोड़ पर कोई न कोई किस्सा जरूर सामने आएगा। कालचक्र में बहुत पीछे जाने की जरूरत भी नहीं है, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर देश को आजादी मिलने की उस पावन सुबह तक के काल खण्ड में आपके आसपास ऐसी कहानी जरूर मिल जाएगी जिसे आप सुनकर दंग रह जाएंगे।

    वर्तमान में आजादी के 75वें वर्ष में हम सभी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। भारत सरकार इस समय जो कार्य कर रही है वह सच में प्रशंसा के योग्य है। देश के लिए अपनी जान गवांने वाले बलिदानियों/ शहीदों को नमन करना, श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित करने के साथ ही एक बार पुनः जनसु्रतियों के आधार पर साक्ष्य जुटाने के प्रयास और इतिहास लेखन का कार्य किया जा रहा है। कुल मिलाकर पूरे देश में राष्ट्रप्रेम के प्रति लोगों में जोश देखा जा रहा है।

    सृजन सेतु के साहित्यिक मंच पर शौर्य गाथा के इस कालम को देख कर पाठकों के मन में सवाल उठ सकता है कि दोनों अपनी अपनी अलग पहचान रखते हैं फिर एक मंच पर क्यों? लेकिन हकीकत यह है कि दोनों एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़े हुए हैं। आज भी जब कोई राष्टप्रेम का गीत हमारे कानों में गूंजता है तो हमारे कदमों की चाल बदल जाती है। एक अजीब सी स्फूर्ति हमारे शरीर में दौड़ती है। जब आज का यह हाल है तो सोचिएं वह दौर जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और लोगों पर इतनी पाबंदियां थीं कि वह न तो खुलेआम जनसभा कर सकते रहे होंगे और न ही एकत्र होकर चर्चा-परिचर्चा खुलेआम कर सकते होंगे। लम्बे-लम्बे भाषण याद करना मुश्किल रहा होगा उस समय कविताओं व गीतों के माध्यम से ही अपनी बात जन-जन तक पहुंचाने और याद रखने का कार्य जरूर हुआ होगा। बिस्मिल अज़ीमाबादी के शेर ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है’ ने जिस तरह देशप्रेमियों में जोश भरा था ऐसी ही अनगिनत गीत कविताएं, कहानियां हर शहर में हैं। शौर्य गाथा के इस पन्ने पर हम आजादी के कुछ अनसुने किस्से जनस्रुतियों के आधार पर पूरी हकीकत और कुछ फसाने सबके सामने लेकर आ रहे हैं।